Wednesday, September 02, 2015

Letter to Prime Minister to abolish reservation

Movement Against Reservation - MAR
279, Gyan Khand-1, Indira Puram, Ghaziabad, UP

दिनांक – 2 सितम्बर 2015

प्रतिष्ठा में,

आदरणीय प्रधानमन्त्री जी
भारत सरकार
साउथ ब्लाक, नई दिल्ली – 110011
  
विषय – मौजूदा जातिगत आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा हेतु ज्ञापन

आरक्षित सीट से चुनाव जीते ज्यादातर सांसद या विधायक हर बार आरक्षित सीट से कई-कई दफा चुनाव लड़ते हैं या फिर उनका कोई परिजन उसी सीट से चुनाव लड़ता हैं जाहिर सी बात है वो कभी नहीं चाहेंगे की आरक्षण खत्म हो. आरक्षण से बने आईएएस, पीसीएस, डॉक्टर, इंजिनियर अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के बावजूद प्रतिसपर्धाई परीक्षा में आरक्षित सीट से बारम्बार लाभ लेते हैं जिस कारण से गरीब अभाव में पढ़ा जरूरतमन्द बालक उसका लाभ लेने से वंचित रह जाता है.जाहिर सी बात है वो भी कभी नहीं चाहेंगे की आरक्षण खत्म हो.
कुछ वर्षों से एक नया चलन चल पड़ा है अधिकांश राजनैतिक दल आरक्षण का प्रलोभन देकर विभिन्न जाति के लोगों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं यह जानते हुए की तय सीमा 50% से अधिक आरक्षण देना सम्भव नहीं है. परिणाम स्वरुप देश में अराजक स्थिति पैदा की जाती है जानमाल का नुकसान भी होता है.

·         दुनिया में भारत के अतिरिक्त कोई ऐसा देश नहीं है जहाँ जातीय आधार पर आरक्षण दिया जाता हो. आरक्षण व्यवस्था ब्रिटिश शासन में देश व् समाज विभाजित करने की योजनाबद्ध साजिश थी जो पुरानी मद्रास प्रेसिडेंसी द्वारा 1765 से शुरू हुई 1901 में महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में साहू जी महाराज द्वारा आरक्षण शुरू किया गया, 1921 में मद्रास प्रेसिडेंसी नें जातिगत आरक्षण का सरकारी आज्ञा पत्र जारी किया, जिसमें 44% गैर ब्राहमण, 16% ब्राह्मण, 16% मुसलमान, 16% भारतीय एंग्लो ईसाई और 8% अछूतों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया. उक्त आरक्षण से 16% मुस्लिम समाज को अलग करने का अंग्रेजों का षड्यंत्र पूरा हुआ
   
   1935  भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचित जाति के लिए 8% आरक्षण का प्रावधान किया गया जिसमें 429 जातियां सूचीबद्ध की गईं 1947 में हिंदुस्तान विभाजित हुआ आबादी घटी परन्तु 1950 में लागू भारतीय संविधान में इनके लिए 15% आरक्षण का प्रावधान हुआ और जातियों की संख्या बढाकर 593 की गई जो आज अर्थात 2015 में बढ़कर 1208 हो गई हैं, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5% आरक्षण का प्रावधान किया गया था जिनकी संख्या 212 थी जो 2015 में बढ़कर 437 हो चुकी है. 1979 में पिछड़ी जातियों को 52% आरक्षण मंडल आयोग की सिफारिश के बावजूद, 27% आरक्षण 50% सीमित सीमा होने के कारण दिया गया जिसमें 1257 पिछड़ी जातियों को सूचीबद्ध किया था जो 2006 में बढ़ाकर 2297 की गई है,

1935 भारत सरकार अधिनियम में अनुसूचित जातियों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किये गए थे, 1950 भारत के संविधान में भी उक्त प्रावधान 10 वर्षों के लिए रखा गया जिसको छ: दशकों से हर 10 वर्ष बाद संविधान संशोधन के जरिये बढ़ा दिया जाता है.

हमारा आपसे विनम्रता पूर्वक आग्रह हैं की
  1. जातीय आधार पर दी जाने वाली आरक्षण व्यवस्था खत्म की जाये
  2. राजनैतिक क्षेत्र में दिया जाने वाला आरक्षण खत्म किया जाये
  3. राजनैतिक दलों द्वारा आरक्षण का प्रलोभन दिया जाना प्रतिबंधित हो.
आरक्षण बढ़ने व्  प्रतिनिधित्व के लिए अल्पकालीन माध्यम तो हो सकता है जन्म सिद्ध अधिकार किसी भी स्थिति में नहीं.

धन्यवाद,

भवदीय


(शान्त प्रकाश जाटव)
राष्ट्रीय अध्यक्ष 
phone - 09871952799

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